सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
वह टापू बहुत ही खूबसूरत था.. सभी सौदागरों ने पहले दरिया में अच्छे से नहाया। उसके बाद उस टापू पर सैर के लिए निकल गए। जानवर तो कोई उस टापू पर था नहीं..! पर पेड़ पौधे बहुत ही ज्यादा खूबसूरत थे... हर तरह के छोटे-मोटे पौधे और बड़े दरख्त भी उस टापू पर मौजूद थे। पूरे टापू पर हल्की हल्की घास भी उगी हुई थी। वहां का माहौल बहुत ही ज्यादा दिल को लुभाने वाला था। हवा भी बहुत ही पुरसुकून बह रही थी।
एक पहर तक सभी को वहां घूम कर बहुत ही ज्यादा दिली सुकून मिला। इतना घूमने के बाद सभी को भूख लगने लगी थी। तब सौदागरों ने मिलकर वही आग जलाकर खाना बनाने की तैयारी कर दी।
थोड़ी देर में एक में लकड़ियां इकट्ठी की.. दूसरे ने खाना बनाने की तैयारी की.. तीसरा सौदागर बड़े-बड़े बर्तनों को यहां वहां ले जा रहा था। सभी सौदागर मिलजुल कर खाना बनाने की तैयारी करने लगे थे।
लकड़ियां इकट्ठा कर आग लगाई गई.. धीरे धीरे आग तेज हो रही थी और जमीन में हल्की हल्की हलचल महसूस होने लगी थी। पर किसी ने भी उस मामूली हलचल पर अब तक ध्यान नहीं दिया था। सभी सौदागर खाना बनाने रखकर अपने दिलजोई के लिए नाचने गाने में मशरूफ हो गए थे। सिंदबाद भी उन्हीं के साथ नाच गाने में मशरूफ था। नाजिया जहाज पर ही कप्तान के पास रुकी थी। जब सब लोग खा पी चुके.. तब भी आग बहुत ही तेज जल रही थी। पर उन्हें धीरे-धीरे अब हलचल महसूस होने लगी थी।
जैसे ही आग को बुझाने के लिए उन्होंने आग पर पानी डाला.. वैसे ही उस टापू में बहुत ही तेज हलचल महसूस हुई। इस बार की हलचल हर एक सौदागर ने महसूस की थी। तभी एक उम्रदराज सौदागर ने हडबडाते हुए सबसे कहा, "यह कोई टापू नहीं है.. यह एक बड़ी सी मछली की पीठ है.. हमें जल्द से जल्द इस पीठ को छोड़कर वापस अपने जहाज पर जाना होगा। यह आग जलाने की वजह से हुआ है। जल्दी ही सब लोग अपनी अपनी नावों पर सवार हो जाओ.. और निकलो यहां से..!!" ऐसा कहकर वो बुढ़ा सौदागर तेजी से नाव की तरफ भाग लिया।
अचानक ही वहां भगदड़ मच गई थी। और उस टापू यानी मछली की हलचल भी बढ़ती जा रही थी। मछली अब जल्दी ही उस दरिया में गोता लगाने के लिए तैयार हो गई थी। सभी सौदागर भागते हुए नावों पर चढ़ गए.. पर बदकिस्मत सिंदबाद उसे इतनी जल्दी सब काम करने की आदत नहीं थी और उसे समझ भी नहीं आया था कि हो क्या गया था। वो वहीं खड़ा बेवकूफ़ों की तरह सब कुछ होता हुआ देख रहा था। सभी सौदागर भागकर नाव पर चले और नाव को जहाज की तरफ बढ़ा दिया। इस वक्त उनका केवल सिंदबाद के लिए रुकना ठीक नहीं होता। अकेले सिंदबाद की वजह से सभी की जान जोखिम में नहीं डाल सकते थे। सिंदबाद भी अभी तक वहां से निकलने के बारे में नहीं सोच रहा था। कुछ ही वक्त के बाद जहाज ने वहां से रवानगी ले ली। वह लोग चाहते थे कि सिंदबाद वापस आ जाए.. पर अब उसके वापस लौटने की कोई भी राह नहीं थी। जहाज पाल उड़ाए दूर और दूर चला जा रहा था।
सिंदबाद की किस्मत बहुत ही ज्यादा बुरी थी। वह देखता रह गया और जहाज दूर निकल गया। दूसरी तरफ मछली ने भी दरिया के अंदर गोता लगा दिया था। सिंदबाद के हाथ में सिर्फ एक लकड़ी का बड़ा सा टुकड़ा था.. जिसके सहारे वह दरिया में नहीं डूबा। उसने बहुत कोशिश की तैर कर कोई महफूज जगह ढूंढने की . पर आसपास कोई भी महफूज टापू नहीं था। सिंदबाद ने अपने आप को किस्मत के हवाले छोड़ दिया था। सिंदबाद अब उस लकड़ी के टुकड़े के सहारे दरिया में तैर रहा था। एक दिन और एक रात लगातार सिंदबाद उस लकड़ी के टुकड़े के सहारे ही दरिया में बचा हुआ था... भूख प्यास से बेचैन और मरने की हालत में। अचानक समुंदर में एक बड़ी सी लहर पैदा हुई। जो शायद किसी बड़े समुंदरी जानवर के कारण पैदा हुई थी। लहर ने एक बड़े बवंडर का रूप ले लिया था। उस बवंडर के कारण दरिया में सैलाब आ गया था। एक बड़ी सी लहर की वजह से सिंदबाद को ठोकर लगी और वह एक टापू पर पहुंच गया। वह टापू भी कोई समतल टापू नहीं था.. एक ढलान वाला टापू था। वो भी कोई मामूली टापू नजर नहीं आ रहा था.. खड़ी ढलान और बड़े-बड़े दरख़्त उगे हुए थे।
किसी तरह सिंदबाद के हाथों में एक बड़े से दरख्त की जड़ आ गई थी। भले ही उस वक्त सिंदबाद के अंदर इतनी जान नहीं थी कि वह अपनी मदद के लिए कुछ कर सके.. पर फिर भी किसी तरह सिंदबाद दरख़्तों और उनकी जड़ों को पकड़ते हुए.. गिरते पड़ते टापू पर पहुंच ही गया। वहां पहुंचकर उसकी हालत मरने जैसी हो गई थी। उसे सांस भी लेने में बहुत ही तकलीफ होने लगी थी। इसलिए वह एक महफूज सी जगह देख कर.. मुर्दों की तरह वहां पड़ गया और अपने आप को आराम पहुंचाने लगा। काफी देर तक जब सिंदबाद यूं ही मुर्दों की तरह उस जगह पड़ा रहा तब कुछ वक्त के बाद उसे थोड़ी राहत मिली। सिंदबाद पूरी रात उस टापू पर ऐसे ही पड़ा रहा था। जब दिन उगा तब सिंदबाद के शरीर में थोड़ी जान आई.. फिर भी उसके अंदर इतनी ताकत नहीं बची थी कि वह चलकर कुछ खाने पीने के लिए ढूंढ सके। फिर भी सिंदबाद ने हिम्मत करके घुटनों के बल घिसटते हुए कुछ खाने पीने के लिए ढूंढने की सोची। वह घिसटते हुए ही खाने पीने के लिए चीजें ढूंढने लगा।
कुछ ही दूरी के फासले पर सिंदबाद को एक मीठे पानी का सोता दिखाई दिया। सिंदबाद ने वहां जाकर पेट भर कर पानी पिया। पानी पीने के कुछ वक्त के बाद उसके शरीर में थोड़ी जान आई। पानी पीकर उसने कुछ वक्त और वहां आराम किया। उसके बाद खाने पीने के लिए कुछ ढूंढने के लिए निकल गया। उस टापू पर बहुत ही सारे दरख़्त थे जो फलों से लदे हुए और छायादार थे। ढूंढते हुए सिंदबाद को कुछ दवाई वाले दरख़्त भी मिले..पानी मे डूबने और घिसटने की वजह से उसके कपड़े फट गए थे और उसे थोड़े बहुत छोटे बडे ज़ख्म भी लगे थे।